शुक्रवार 12 दिसंबर 2025 - 11:55
बच्चों को अपने माता-पिता की कद्र करना सीखना चाहिए; एक माँ की मुश्किलें और दुख बयान नहीं किए जा सकते

हौज़ा/ आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी अमोली ने अपने तफ़सीर के दर्स में माता-पिता का सम्मान करने की अहमियत समझाते हुए कहा कि बच्चों, खासकर बेटों और बेटियों को हमेशा अपने माता-पिता के बहुत बड़े त्याग और कोशिशों को ध्यान में रखना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक,आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी अमोली ने अपने तफ़सीर के दर्स  (18 अप्रैल, 2016) में माता-पिता का सम्मान करने और उनकी सेवा करने की ज़रूरत पर बात करते हुए कहा कि हालांकि घर और खर्चों की ज़िम्मेदारी पिता की मुश्किलों को दिखाती है, लेकिन प्रेग्नेंसी, बच्चे के जन्म, बचपन और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान एक माँ को जो मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, वे बहुत मुश्किल होती हैं।

उन्होंने कहा कि यह बात बच्चों को याद दिलाती है कि बेटों को भी शुक्रगुजार होना चाहिए और बेटियों को भी इस रास्ते को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मानना ​​चाहिए। अयातुल्ला जवादी अमोली ने सूरह लुकमान की आयत 14 का ज़िक्र करते हुए कहा कि पवित्र कुरान खुद माँ की मुश्किलों को बताता है:

“«وَ وَصَّیْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَیْهِ … حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَىٰ وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ व वस्सयनल इंसाना बेवालेदैयह ... हमलतहू उम्मोहू वहनन अला वहनिन व फ़ेसालोहू फ़ी आमैने...”

यानी, हमने इंसान को उसके माता-पिता का हुक्म दिया है, उसकी माँ ने उसे कमज़ोरी पर कमज़ोरी उठाकर पाला, और हमने दो साल में उसे दूध छुड़ा दिया। तो उसे मेरा और अपने माता-पिता का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, और मेरी ही तरफ़ लौटना है।”

उन्होंने कहा कि इस कुरानिक शिक्षा का मकसद यह है कि बेटे अपनी माँ की कीमत समझें और बेटियाँ इस आयत से माँ बनने का सबक सीखें, ताकि समाज में माता-पिता का सम्मान करने और उनकी सेवा करने की भावना मज़बूत हो।

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